किस तरह उजड़े सुलगती हुई यादों के दिए
हमदमो दिल के क़रीब आओ रुको और सुनो
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जो मय-कदे से भी दामन बचा बचा के चले
ज़िंदगी एक सज़ा हो जैसे
तीरगी ही तीरगी है बाम-ओ-दर में कौन है
ज़ात के पर्दे से बाहर आ के भी तन्हा रहूँ
जब कोई भी ख़ाक़ान सर-ए-बाम न होगा
हम एक जाँ ही सही दिल तो अपने अपने थे
देख कोह-ए-ना-रसा बन कर भरम रक्खा तिरा
जरस-ए-मय ने पुकारा है उठो और सुनो
मंज़िल-ए-शम्स-ओ-क़मर से गुज़रे
आज वो फूल बना हुस्न-ए-दिल-आरा देखा
अब अनासिर में तवाज़ुन ढूँडने जाएँ कहाँ