हम एक जाँ ही सही दिल तो अपने अपने थे
कहीं कहीं से फ़साना जुदा तो होना था
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जरस-ए-मय ने पुकारा है उठो और सुनो
देख कोह-ए-ना-रसा बन कर भरम रक्खा तिरा
मिरे बदन से कभी आँच इस तरह आए
तीरगी ही तीरगी है बाम-ओ-दर में कौन है
शोर करता फिर रहा हूँ ख़ुश्क पत्तों की तरह
मंज़िल-ए-शम्स-ओ-क़मर से गुज़रे
मैं आइना था छुपाता किसी को क्या राहत
हो सके तो दिल-ए-सद-चाक दिखाया जाए
रोज़ जो मरता है इस को आदमी लिक्खो कभी
ज़िंदगी एक सज़ा हो जैसे
किस तरह उजड़े सुलगती हुई यादों के दिए
हमीं थे जान-ए-बहाराँ हमीं थे रंग-ए-तरब