अब अनासिर में तवाज़ुन ढूँडने जाएँ कहाँ
हम जिसे हमराज़ समझे पासबाँ निकला तिरा
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देख कोह-ए-ना-रसा बन कर भरम रक्खा तिरा
शोर करता फिर रहा हूँ ख़ुश्क पत्तों की तरह
मैं तिरी दस्तरस से बहुत दूर था
हम एक जाँ ही सही दिल तो अपने अपने थे
किस तरह उजड़े सुलगती हुई यादों के दिए
जो दुहाई दे रहा है कोई सौदाई न हो
हो सके तो दिल-ए-सद-चाक दिखाया जाए
हमीं थे जान-ए-बहाराँ हमीं थे रंग-ए-तरब
तीरगी ही तीरगी है बाम-ओ-दर में कौन है
मैं आइना था छुपाता किसी को क्या राहत
रोज़ जो मरता है इस को आदमी लिक्खो कभी