खफा Poetry (page 1)

नद्दी ये जैसे मौज में दरिया से जा मिले

जानाँ मलिक

इक तेरी बे-रुख़ी से ज़माना ख़फ़ा हुआ

अर्श सिद्दीक़ी

नज़र से छुप गए दिल से जुदा तो होना था

शाम-ए-ग़म याद नहीं सुब्ह-ए-तरब याद नहीं

ज़ुहैर कंजाही

मेरी तज्वीज़ पर ख़फ़ा क्यूँ हो

ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब

हर ख़ार इनायत था हर इक संग सिला था

ज़ेहरा निगाह

न होगा हश्र महशर में बपा क्या

ज़ेबा

जाग के मेरे साथ समुंदर रातें करता है

ज़ेब ग़ौरी

बे-मकाँ मेरे ख़्वाब होने लगे

ज़की तारिक़

नज़र को वुसअतें दे बिजलियों से आश्ना कर दे

ज़हीर अहमद ताज

जानती हूँ कि वो ख़फ़ा भी नहीं

ज़ाहीदा हिना

मिरा ही बन के वो बुत मुझ से आश्ना न हुआ

ज़हीर काश्मीरी

फ़र्ज़ बरसों की इबादत का अदा हो जैसे

ज़हीर काश्मीरी

कभी बोलना वो ख़फ़ा ख़फ़ा कभी बैठना वो जुदा जुदा

ज़हीर देहलवी

वो किसी से तुम को जो रब्त था तुम्हें याद हो कि न याद हो

ज़हीर देहलवी

कुछ शिकवे-गिले होते कुछ तैश सिवा होता

ज़हीर देहलवी

जाते हो तुम जो रूठ के जाते हैं जी से हम

ज़हीर देहलवी

सब्ज़े से सब दश्त भरे हैं ताल भरे हैं पानी से

ज़फ़र सहबाई

अमीर-ए-शहर इस इक बात से ख़फ़ा है बहुत

ज़फ़र सहबाई

ये जो तेरी आँखों में मा'नी-ए-वफ़ा सा है

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

बजा है ज़िंदगी से हम बहुत रहे नाराज़

ज़फ़र अज्मी

बदन से रूह तलक हम लहू लहू हुए हैं

ज़फ़र अज्मी

जिस का बदन है ख़ुश्बू जैसा जिस की चाल सबा सी है

यूसुफ़ ज़फ़र

पास होते हुए जुदा क्यूँ है

यूनुस ग़ाज़ी

मुसाफ़िरों के ये वहम-ओ-गुमाँ में था ही नहीं

याक़ूब तसव्वुर

सच कहियो कि वाक़िफ़ हो मिरे हाल से 'आमिर'

याक़ूब आमिर

नज़रों में कहाँ उस की वो पहला सा रहा मैं

याक़ूब आमिर

रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में

वज़ीर अली सबा लखनवी

कोई सूरत से गर सफ़ा हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता

वसीम बरेलवी

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