खफा Poetry (page 3)

फूल चेहरा आँसुओं से धो गए

सय्यद हामिद

रऊनतों में न इतनी भी इंतिहा हो जाए

सय्यद अारिफ़

ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-ए-बयाँ भी तो हो

सय्यद आबिद अली आबिद

ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था

सय्यद आबिद अली आबिद

सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की

सुल्तान सुकून

सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की

सुल्तान सुकून

सब का चेहरा पस-ए-दीवार-ए-अना रहता है

सुल्तान अख़्तर

काम आती नहीं अब कोई तदबीर हमारी

सुल्तान अख़्तर

ख़िज़ाँ की आज़माइश हो गया हूँ

सुहैल अख़्तर

ज़ब्त की क़ैद-ए-सख़्त ने हम को रिहा नहीं किया

सूफ़िया अनजुम ताज

मैं यूँ तो ख़्वाब की ताबीर सोचता भी नहीं

सुबहान असद

तुझे पा के तुझ से जुदा हो गए हम

सिराज लखनवी

वो सर्द धूप रेत समुंदर कहाँ गया

सिदरा सहर इमरान

अब जी रहा हूँ गर्दिश-ए-दौराँ के साथ साथ

शोरिश काश्मीरी

कोई हम से ख़फ़ा सा लगता है

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

वो जो मुझ से ख़फ़ा नहीं होता

शिफ़ा कजगावन्वी

तीस दिन के लिए तर्क-ए-मय-ओ-साक़ी कर लूँ

शिबली नोमानी

बराबर ख़फ़ा हों बराबर मनाएँ

शेरी भोपाली

हम ज़िंदगी-शनास थे सब से जुदा रहे

शहपर रसूल

गह हम से ख़फ़ा वो हैं गहे उन से ख़फ़ा हम

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

मैं लौट आऊँ कहीं तू ये सोचता ही न हो

शाज़ तमकनत

कुछ अजब आन से लोगों में रहा करते थे

शाज़ तमकनत

कौन देता रहा सहरा में सदा मेरी तरह

शाज़ तमकनत

दूसरे हाथ का दुख

शारिक़ कैफ़ी

पहली बार वो ख़त लिक्खा था

शारिक़ कैफ़ी

हम तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का गिला भी नहीं करते

शम्स ज़ुबैरी

ख़मोश किस लिए बैठे हो चश्म-ए-तर क्यूँ हो

शमीम करहानी

फ़ासला तो है मगर कोई फ़ासला नहीं

शमीम करहानी

चमन चमन जो ये सुब्ह-ए-बहार की ज़ौ है

शमीम करहानी

इस इल्तिफ़ात पर कोई दामन न थाम ले

शमीम जयपुरी

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