पत्र Poetry (page 8)

तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना

रिन्द लखनवी

तोहमत-ए-हसरत-ए-पर्वाज़ न मुझ पर बाँधे

रिन्द लखनवी

छुप के घर ग़ैर के जाया न करो

रिन्द लखनवी

चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है

रिन्द लखनवी

घर को अब दश्त-ए-कर्बला लिक्खूँ

रिफ़अत सरोश

हुस्न की फ़ितरत में दिल-आज़ारियाँ

रज़ा लखनवी

उस चश्म ने कि तूतियों को नुक्ता-दाँ किया

रज़ा अज़ीमाबादी

क्या न-दीदों से ज़माने को सरोकार है आज

रज़ा अज़ीमाबादी

हर नफ़स मूरिद-ए-सफ़र हैं हम

रज़ा अज़ीमाबादी

उम्र भर पेश-ए-नज़र माह-ए-तमाम आते रहे

रौनक़ रज़ा

जितना पाता हूँ गँवा देता हूँ

रउफ़ रज़ा

लोग कि जिन को था बहुत ज़ोम-ए-वजूद शहर में

राशिद मुफ़्ती

दिल की बे-इख़्तियारियाँ न गईं

रशीद रामपुरी

तन्हाइयों का हब्स मुझे काटता रहा

रशीद क़ैसरानी

तन्हाइयों का हब्स मुझे काटता रहा

रशीद क़ैसरानी

ठहर जावेद के अरमाँ दिल-ए-मुज़्तर निकलते हैं

रशीद लखनवी

शराब-ए-नाब का क़तरा जो साग़र से निकल जाए

रशीद लखनवी

हम जूँ चकोर ग़श हैं अजी एक यार पर

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

मेरे ख़त का जवाब आया था

राणा गन्नौरी

जिस तरफ़ भी देखती हूँ एक ही तस्वीर है

रख़शां हाशमी

इक ढेर राख में से शरर चुन रहा हूँ मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

आज इक लहर भी पानी में न थी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त

राजेन्द्र नाथ रहबर

चलो माना कि फुर्तीले नहीं थे

राजेन्द्र कलकल

अदीब की महबूबा

राजा मेहदी अली ख़ाँ

आख़िरी गाली

राजा मेहदी अली ख़ाँ

दीदनी है बहार का मंज़र

रईस अमरोहवी

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ

इक़बाल अज़ीम

कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए

इक़बाल अशहर

सर चश्म सब्र दिल दीं तन माल जान आठों

इंशा अल्लाह ख़ान

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