पत्र Poetry (page 10)

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है

हस्तीमल हस्ती

हुस्न-ए-बे-परवा को ख़ुद-बीन ओ ख़ुद-आरा कर दिया

हसरत मोहानी

जिस का मयस्सर न था भर के नज़र देखना

हसरत अज़ीमाबादी

इश्क़ में गुल के जो नालाँ बुलबुल-ए-ग़मनाक है

हसरत अज़ीमाबादी

हुस्न को उस के ख़त का दाग़ लगा

हसरत अज़ीमाबादी

गर इश्क़ से वाक़िफ़ मरे महबूब न होता

हसरत अज़ीमाबादी

तिरी मदद का यहाँ तक हिसाब देना पड़ा

हसीब सोज़

मैं ने उस को बर्फ़ दिनों में देखा था

हसन रिज़वी

चेहरे पे मोहर-ए-ग़म है ख़त-ओ-ख़ाल की तरह

हसन नईम

चेहरे पे मोहर-ए-ग़म है ख़त-ओ-ख़ाल की तरह

हसन नईम

चश्म-ए-ज़ाहिर से रुख़-ए-यार का पर्दा देखा

हसन बरेलवी

मैं फिर इक ख़त तिरे आँगन गिराना चाहता हूँ

हसन अब्बास रज़ा

सीने की ख़ानक़ाह में आने नहीं दिया

हसन अब्बास रज़ा

इरादा था कि अब के रंग-ए-दुनिया देखना है

हसन अब्बास रज़ा

या उस से जवाब-ए-ख़त लाना या क़ासिद इतना कह देना

हक़ीर

ऐ यास जो तू दिल में आई सब कुछ हुआ पर कुछ भी न हुआ

हक़ीर

आज का ख़त ही उसे भेजा है कोरा लेकिन

हामिद मुख़्तार हामिद

अपनी तक़दीर का शिकवा नहीं लिख्खा मैं ने

हामिद मुख़्तार हामिद

सहरा में हर तरफ़ है वही शोर-ए-अल-अतश

हामिद हुसैन हामिद

अब के उस ने कमाल कर डाला

हैदर क़ुरैशी

शोहरा-ए-आफ़ाक़ मुझ सा कौन सा दीवाना है

हैदर अली आतिश

शब-ए-फ़ुर्क़त में यार-ए-जानी की

हैदर अली आतिश

पयम्बर मैं नहीं आशिक़ हूँ जानी

हैदर अली आतिश

मोहब्बत का तिरी बंदा हर इक को ऐ सनम पाया

हैदर अली आतिश

लख़्त-ए-जिगर को क्यूँकर मिज़्गान-ए-तर सँभाले

हैदर अली आतिश

जोश-ओ-ख़रोश पर है बहार-ए-चमन हनूज़

हैदर अली आतिश

जब के रुस्वा हुए इंकार है सच बात में क्या

हैदर अली आतिश

इस शश-जिहत में ख़ूब तिरी जुस्तुजू करें

हैदर अली आतिश

फ़रेब-ए-हुस्न से गब्र-ओ-मुसलमाँ का चलन बिगड़ा

हैदर अली आतिश

बर्क़ को उस पर अबस गिरने की हैं तय्यारियाँ

हैदर अली आतिश

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