सपना Poetry (page 106)

और किस का घर कुशादा है कहाँ ठहरेगी रात

आबिद मुनावरी

अगले पड़ाव पर यूँही ख़ेमा लगाओगे

आबिद मुनावरी

सब मुझे ढूँडने निकले हैं बुझा कर आँखें

आबिद मलिक

शहर से जब भी कोई शहर जुदा होता है

आबिद मलिक

आसूदगान-ए-हिज्र से मिलने की चाह में

आबिद मलिक

आख़िरी बार ज़माने को दिखाया गया हूँ

आबिद मलिक

किसे ख़बर थी कि ख़ुद को वो यूँ छुपाएगा

आबिद ख़ुर्शीद

आलम-ए-ख़्वाब सही ख़्वाब में चलते रहिए

आबिद करहानी

श्याम गोकुल न जाना कि राधा का जी अब न बंसी की तानों पे लहराएगा

आबिद हशरी

रात

आबिद आलमी

जो कहते हैं किधर दीवानगी है

आबिद अख़्तर

तेरी आँखों के लिए इतनी सज़ा काफ़ी है

अभिषेक शुक्ला

शब भर इक आवाज़ बनाई सुब्ह हुई तो चीख़ पड़े

अभिषेक शुक्ला

सफ़र के बाद भी ज़ौक़-ए-सफ़र न रह जाए

अभिषेक शुक्ला

सुर्ख़ सहर से है तो बस इतना सा गिला हम लोगों का

अभिषेक शुक्ला

सफ़र के बा'द भी ज़ौक़-ए-सफ़र न रह जाए

अभिषेक शुक्ला

लहर का ख़्वाब हो के देखते हैं

अभिषेक शुक्ला

हम ऐसे सोए भी कब थे हमें जगा लाते

अभिषेक शुक्ला

दर-ए-ख़याल भी खोलें सियाह शब भी करें

अभिषेक शुक्ला

चलते हुए मुझ में कहीं ठहरा हुआ तू है

अभिषेक शुक्ला

अब इख़्तियार में मौजें न ये रवानी है

अभिषेक शुक्ला

फ़रेब-ए-ज़ार मोहब्बत-नगर खुला हुआ है

अब्दुर्राहमान वासिफ़

अच्छा है कोई तीर-बा-नश्तर भी ले चलो

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

मैं तुझ को जागती आँखों से छू सकूँ न कभी

अब्दुल्लाह कमाल

वादा-ए-वस्ल है लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार उठा

अब्दुल्लाह कमाल

इतना यक़ीन रख कि गुमाँ बाक़ी रहे

अब्दुल्लाह कमाल

हसीन ख़्वाब न दे अब यक़ीन-ए-सादा दे

अब्दुल्लाह कमाल

अभी गुनाह का मौसम है आ शबाब में आ

अब्दुल्लाह कमाल

देखते हम भी हैं कुछ ख़्वाब मगर हाए रे दिल

अब्दुल्लाह जावेद

हम क्या कहें कि आबला-पाई से क्या मिला

अब्दुल्लाह जावेद

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