सपना Poetry (page 52)

ख़ौफ़ के सैल-ए-मुसलसल से निकाले मुझे कोई

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हिज्र की धूप में छाँव जैसी बातें करते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ग़ैरों से दाद-ए-जौर-ओ-जफ़ा ली गई तो क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

फ़ज़ा में वहशत-ए-संग-ओ-सिनाँ के होते हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

दोस्त क्या ख़ुद को भी पुर्सिश की इजाज़त नहीं दी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

दयार-ए-नूर में तीरा-शबों का साथी हो

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मिरा है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया

इफ़्तिख़ार आरिफ़

क़ुर्बान जाऊँ हुस्न-ए-क़मर इंतिसाब के

इफ़तिख़ार अहमद फख्र

एहसास

इफ़्तिख़ार आज़मी

यहाँ से चारों तरफ़ रास्ते निकलते हैं

इदरीस बाबर

वही ख़्वाब है वही बाग़ है वही वक़्त है

इदरीस बाबर

फूल है जो किताब में अस्ल है कि ख़्वाब है

इदरीस बाबर

मैं जानता हूँ ये मुमकिन नहीं मगर ऐ दोस्त

इदरीस बाबर

यूँही आती नहीं हवा मुझ में

इदरीस बाबर

यहाँ से चारों तरफ़ रास्ते निकलते हैं

इदरीस बाबर

तिरी गली से गुज़रने को सर झुकाए हुए

इदरीस बाबर

सो दुनिया में जीना बसना दिल को मरने मत देना

इदरीस बाबर

रब्त असीरों को अभी उस गुल-ए-तर से कम है

इदरीस बाबर

मिरे क़रीब ही महताब देख सकता था

इदरीस बाबर

मैं उसे सोचता रहा या'नी

इदरीस बाबर

मैं कुछ दिनों में उसे छोड़ जाने वाला था

इदरीस बाबर

ख़मोश रह के ज़वाल-ए-सुख़न का ग़म किए जाएँ

इदरीस बाबर

करते फिरते हैं ग़ज़ालाँ तिरा चर्चा साहब

इदरीस बाबर

इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ

इदरीस बाबर

इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ

इदरीस बाबर

गुल-ए-सुख़न से अँधेरों में ताब-कारी कर

इदरीस बाबर

एक दिन ख़्वाब-नगर जाना है

इदरीस बाबर

दोस्त कुछ और भी हैं तेरे अलावा मिरे दोस्त

इदरीस बाबर

दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ

इदरीस बाबर

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