खेल Poetry (page 7)

एक उदास शाम के नाम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अपने एहसानों का नीला साएबाँ रहने दिया

इबरत मछलीशहरी

अजब है खेल कैरम का

इब्न-ए-मुफ़्ती

ये सराए है

इब्न-ए-इंशा

पिछले-पहर के सन्नाटे में

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

दिल पीत की आग में जलता है

इब्न-ए-इंशा

किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे

इब्न-ए-इंशा

है मेरे गिर्द यक़ीनन कहीं हिसार सा कुछ

हुसैन ताज रिज़वी

मैदान

हुसैन आबिद

मादर-ए-वतन का नौहा

हिमायत अली शाएर

कुछ मोहब्बत में अजब शेव-ए-दिल-दार रहा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

नज़र उस पर फ़िदा है जिस की ताबानी नहीं जाती

हसरत कमाली

कभी आबाद करता है कभी बरबाद करता है

हसन रिज़वी

बिसात दिल की भला क्या निगाह-ए-यार में है

हसन कमाल

ऐ फ़ैरी-टेल

हसन अकबर कमाल

ये कार-ए-इश्क़ तो बच्चों का खेल ठहरा है

हसन अब्बास रज़ा

किसी की याद में आँखों को लाल क्या करना

हसन अब्बास रज़ा

जब मुंडेरों पे परिंदों की कुमक जारी थी

हम्माद नियाज़ी

कभी अपनों की यूरिश थी कभी ग़ैरों का रेला था

हमीद जालंधरी

है इतना ही अब वास्ता ज़िंदगी से

हैरत गोंडवी

सब्ज़ा बाला-ए-ज़क़न दुश्मन है ख़ल्क़ुल्लाह का

हैदर अली आतिश

कहीं मरने वाले कहा मानते हैं

हफ़ीज़ जौनपुरी

एक लड़की शादाँ

हफ़ीज़ जालंधरी

चले थे हम कि सैर-ए-गुलशन-ए-ईजाद करते हैं

हफ़ीज़ जालंधरी

बगिया लहूलुहान

हबीब जालिब

वो उट्ठे हैं तेवर बदलते हुए

हबीब मूसवी

उस से क्या छुप सके बनाई बात

हबीब मूसवी

चल नहीं सकते वहाँ ज़ेहन-ए-रसा के जोड़-तोड़

हबीब मूसवी

हम अहल-ए-आरज़ू पे अजब वक़्त आ पड़ा

हबीब हैदराबादी

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