खेल Poetry (page 6)

संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है

साहिर लुधियानवी

तिरी नज़र के इशारों से खेल सकता हूँ

साग़र सिद्दीक़ी

क्रिकेट मैच

साग़र ख़य्यामी

उस के जज़्बात से यूँ खेल रहा हूँ 'साग़र'

साग़र आज़मी

प्यास सदियों की है लम्हों में बुझाना चाहे

साग़र आज़मी

जब तेज़ भूक लगी हो

सईदुद्दीन

एक पुरानी नज़्म

सादिक़

ये उम्र भर का सफ़र है इसी सहारे पर

साबिर वसीम

था निगाहों में बसाया जाने किस तस्वीर को

रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान

ये आलम-ए-वहशत है कि दहशत का असर है

रियासत अली ताज

अदू ग़ैर ने तुझ को दिलबर बनाया

रिन्द लखनवी

नज्म-ए-सहर

रिफ़अत सरोश

बदल सका न जुदाई के ग़म उठा कर भी

रियाज़ मजीद

यूँ तो लिखने के लिए क्या नहीं लिक्खा मैं ने

राज़ी अख्तर शौक़

बिछड़ते वक़्त तो कुछ उस में ग़म-गुसारी थी

राज़ी अख्तर शौक़

हर एक घर का दरीचा खुला है मेरे लिए

रज़ा हमदानी

न बातें कीं न तस्कीं दी न पहलू में ज़रा ठहरे

रौनक़ टोंकवी

भूली-बिसरी ख़्वाहिशों का बोझ आँखों पर न रख

रौनक़ रज़ा

बिकती नहीं फ़क़ीर की झोली ही क्यूँ न हो

रऊफ़ ख़ैर

मुजरिम है तुम्हारा तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

राशिद फ़ज़ली

यक़ीनन है कोई माह-ए-मुनव्वर पीछे चिलमन के

रंजूर अज़ीमाबादी

ये ज़रा सा कुछ और एक-दम बे-हिसाब सा कुछ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

क्या क्या गुमाँ न थे मुझे अपनी उड़ान पर

रहमान ख़ावर

मैं इक फेरी वाला

राही मासूम रज़ा

चाँद और चकोर

राही मासूम रज़ा

हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले

इरफ़ान सत्तार

एक इक लम्हा कि एक एक सदी हो जैसे

इक़बाल उमर

बे-कसी पर ज़ुल्म ला-महदूद है

इक़बाल कैफ़ी

ख़ुदा से कलाम

इंजिला हमेश

मौसम सूखा सूखा सा था लेकिन ये क्या बात हुई

इमाम अाज़म

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