क्या क्या गुमाँ न थे मुझे अपनी उड़ान पर

क्या क्या गुमाँ न थे मुझे अपनी उड़ान पर

बाज़ू जो शल हुए तो गिरा हूँ चटान पर

ख़ुद्दारियों से कौन ये पूछे कि आज तक

कितने अज़ाब हम ने लिए अपनी जान पर

अब के न जाने रुत को नज़र किस की खा गई

इक बार भी पड़ी न धनक आसमान पर

कश्ती में सो गए जो उन्हें ये ख़बर कहाँ

कितना है आज ज़ोर-ए-हवा बादबान पर

ख़ुश-फ़हमियों के दौर से पहले जो थी कभी

वो बरतरी कहाँ है यक़ीं को गुमान पर

इक बे-कराँ ख़ला है निगाहों में हर तरफ़

या'नी ज़मीन पर हैं न हम आसमान पर

'ख़ावर' भी ज़िंदगी से नबर्द-आज़मा हुआ

क्या शख़्स था जो खेल गया अपनी जान पर

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In Hindi By Famous Poet Rahman Khawar. is written by Rahman Khawar. Complete Poem in Hindi by Rahman Khawar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.