खेल Poetry (page 8)

वक़्त-2

गुलज़ार

एक ख़्वाब

गुलज़ार

मिरे पहलू से जो निकले वो मिरी जाँ हो कर

ग़ुलाम भीक नैरंग

दिल की मिट्टी चुपके चुपके रोती है

ग़ुफ़रान अमजद

तारीकी में नूर का मंज़र सूरज में शब देखोगे

ग़ज़नफ़र

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

ग़ालिब

हाँ काहिश-ए-फ़ुज़ूल का हासिल भी कुछ नहीं

गौहर होशियारपुरी

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

इक रोज़ हुए थे कुछ इशारात ख़फ़ी से

फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़मों से खेलते रहना कोई हँसी भी नहीं

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

सरहदें

फ़ाज़िल जमीली

छाँव को तकते धूप में चलते एक ज़माना बीत गया

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

आँख और नींद के रिश्ते मुझे वापस कर दे

फ़े सीन एजाज़

आख़िरी लफ़्ज़

फ़ातिमा हसन

जाता है जो घरों को वो रस्ता बदल दिया

फ़ातिमा हसन

अदा हुआ न क़र्ज़ और वजूद ख़त्म हो गया

फ़रियाद आज़र

नख़्ल-ए-ममनूअा के रुख़ दोबारा गया मैं तो मारा गया

फ़रताश सय्यद

ख़ाली नहीं है कोई यहाँ पर अज़ाब से

फ़ारूक़ अंजुम

लाख रहे शहरों में फिर भी अंदर से देहाती थे

फ़रहत ज़ाहिद

ख़ुद-आगही

फ़रहत एहसास

दुनिया को कहाँ तक जाना है

फ़रहत एहसास

हर इक जानिब उन आँखों का इशारा जा रहा है

फ़रहत एहसास

बहुत मुमकिन था हम दो जिस्म और इक जान हो जाते

फ़रहत एहसास

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

फ़रीद इशरती

दिल का उजड़ना सहल सही बसना सहल नहीं ज़ालिम

फ़ानी बदायुनी

दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है

फ़ानी बदायुनी

दिल की तरफ़ हिजाब-ए-तकल्लुफ़ उठा के देख

फ़ानी बदायुनी

बला से बर्क़ ने फूँका जो आशियाने को

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

दर्द आएगा दबे पाँव

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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