खिड़की Poetry (page 2)
पेश वो हर पल है साहब
वक़ार सहर
पस्पाई
वहाब दानिश
हवा बहने लगी मुझ में
विकास शर्मा राज़
सुनो कवी तौसीफ़ तबस्सुम इस दुख से क्या पाओगे
तौसीफ़ तबस्सुम
छोटी सी खिड़की है
तनवीर अंजुम
पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा
तहज़ीब हाफ़ी
ख़्वाहिशें और ख़ून
तबस्सुम काश्मीरी
इक रेल के सफ़र की तस्वीर खींचता हूँ
सय्यद ज़मीर जाफ़री
है जल्वा-फ़रोशी की दुकाँ जो ये अब इसी ने
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ये किताबों सी जो हथेली है
स्वप्निल तिवारी
मेरे होंटों को छुआ चाहती है
स्वप्निल तिवारी
कोई भी शहर में खुल कर न बग़ल-गीर हुआ
सुल्तान अख़्तर
हंगामों के क़हत से खिड़की दरवाज़े मबहूत
सुल्तान अख़्तर
हम न सही
सुबोध लाल साक़ी
लकड़ी की दो मेज़ें हैं इक लोहे की अलमारी है
सिदरा सहर इमरान
शहर-ए-एहसास में ज़ख़्मों के ख़रीदार बहुत
सिद्दीक़ अफ़ग़ानी
आरज़ू थी एक दिन तुझ से मिलूँ
शीन काफ़ निज़ाम
रात थी जब तुम्हारा शहर आया
शारिक़ कैफ़ी
नज़र भर देख लूँ बस
शारिक़ कैफ़ी
बैत-ए-अंकबूत
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
तू क्या जाने तेरी बाबत क्या क्या सोचा करते हैं
शमीम अब्बास
शहर में आ ही गए हैं तो गुज़ारा कर लें
शमीम अब्बास
ख़िज़ाँ के चाँद ने पूछा ये झुक के खिड़की में
शकेब जलाली
झोंका हवा का अध-खुली खिड़की तक आ न जाए
शकेब अयाज़
ख़्वाब की बातें
शाइस्ता हबीब
दाएरे
शाइस्ता हबीब
उठीं आँखें अगर आहट सुनी है
शहज़ाद अहमद
ला-ज़वाल होने का
शहरयार
खुले जो आँख कभी दीदनी ये मंज़र हैं
शहरयार
नींद की माती
शहनाज़ नबी
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