ऋतु Poetry (page 15)

कितने शिकवे गिले हैं पहले ही

फ़ारिग़ बुख़ारी

इज़हार-ए-अक़ीदत में कहाँ तक निकल आए

फ़ारिग़ बुख़ारी

हुए हैं सर्द दिमाग़ों के दहके दहके अलाव

फ़ारिग़ बुख़ारी

देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी

फ़ारिग़ बुख़ारी

आई ख़िज़ाँ चमन में गए दिन बहार के

फ़रहत क़ादरी

जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ

फ़रहत एहसास

एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं

फ़रहत एहसास

बहुत सी आँखें लगीं हैं और एक ख़्वाब तय्यार हो रहा है

फ़रहत एहसास

मैं तिरे संग कैसे चलूँ हम-सफ़र तू समुंदर है मैं साहिलों की हवा

फ़रहान सालिम

अभी मकाँ मैं अभी सू-ए-ला-मकाँ हूँ मैं

फ़रीद जावेद

मोहब्बत का दिया ऐसे बुझा था

फ़रह इक़बाल

शबाब-ए-होश कि फ़िल-जुमला यादगार हुई

फ़ानी बदायुनी

या रब मिरी हयात से ग़म का असर न जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

मेरे चेहरे से ग़म आश्कारा नहीं

फ़ना निज़ामी कानपुरी

गुलों के चेहरा-ए-रंगीं पे वो निखार नहीं

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

ऐ दिल अच्छा नहीं मसरूफ़-ए-फ़ुग़ाँ हो जाना

फ़ैज़ुल हसन

अगस्त-1952

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रह-ए-ख़िज़ाँ में तलाश-ए-बहार करते रहे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

क़ंद-ए-दहन कुछ इस से ज़ियादा

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कुछ पहले इन आँखों आगे क्या क्या न नज़ारा गुज़रे था

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम सादा ही ऐसे थे की यूँ ही पज़ीराई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अब वही हर्फ़-ए-जुनूँ सब की ज़बाँ ठहरी है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अब के बरस दस्तूर-ए-सितम में क्या क्या बाब ईज़ाद हुए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बेबसी गीत बुनती रहती है

फ़हीम शनास काज़मी

गुल तिरे मुख की फ़िक्र में बीमार

फ़ाएज़ देहलवी

तुम ऐसा करना कि कोई जुगनू कोई सितारा सँभाल रखना

एज़ाज़ अहमद आज़र

दरख़्त-ए-जाँ पर अज़ाब-रुत थी न बर्ग जागे न फूल आए

एज़ाज़ अहमद आज़र

सरहद-ए-जल्वा से जो आगे निकल जाएगी

एज़ाज़ अफ़ज़ल

आँगन आँगन ख़ाना-ख़राबी हँसती है मे'मारों पर

एज़ाज़ अफ़ज़ल

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