ऋतु Poetry (page 16)

थीं इक सुकूत से ज़ाहिर मोहब्बतें अपनी

एजाज़ उबैद

पेचाक-ए-उम्र अपने सँवार आइने के साथ

एजाज़ गुल

ख़ाशाक से ख़िज़ाँ में रहा नाम बाग़ का

एजाज़ गुल

अक्स उभरा न था आईना-ए-दिल-दारी का

एजाज़ गुल

अपना अपना रंग

एजाज़ फ़ारूक़ी

सदा-ए-अहद-ए-वफ़ा को ज़वाल क्यूँ आया

एजाज़ अासिफ़

नवेद-ए-यौम-ए-बहाराँ ख़िज़ाँ से ज़ाहिर हो

एजाज़ अासिफ़

किस दिल से हम इरादा-ए-तर्क-ए-जुनूँ करें

एजाज़ अासिफ़

अक़्ल पहुँची जो रिवायात के काशाने तक

एहतिशाम हुसैन

सोज़-ए-जुनूँ को दिल की ग़िज़ा कर दिया गया

एहसान दानिश

परस्तिश-ए-ग़म का शुक्रिया क्या तुझे आगही नहीं

एहसान दानिश

राज़-ए-निहाँ थी ज़िंदगी राज़-ए-निहाँ है आज भी

दर्शन सिंह

गुलों पे ख़ाक-ए-मेहन के सिवा कुछ और नहीं

दर्शन सिंह

मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

न वो ताएरों का जमघट न वो शाख़-ए-आशियाना

दानिश फ़राही

पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह

दाग़ देहलवी

फिरे राह से वो यहाँ आते आते

दाग़ देहलवी

दिल बला से निसार हो जाए

चराग़ हसन हसरत

जब सर-ए-बाम वो ख़ुर्शीद-जमाल आता है

चरख़ चिन्योटी

फ़ित्ना-ए-रोज़गार की बातें

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

रामायण का एक सीन

चकबस्त ब्रिज नारायण

कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में

चकबस्त ब्रिज नारायण

जब ख़िज़ाँ आई चमन में सब दग़ा देने लगे

बूम मेरठी

आज़ार-ओ-जफ़ा-ए-पैहम से उल्फ़त में जिन्हें आराम नहीं

बिस्मिल इलाहाबादी

क्या रौशनी-ए-हुस्न-ए-सबीह अंजुमन में है

बिशन नरायण दराबर

न कुनिश्त ओ कलीसा से काम हमें दर-ए-दैर न बैत-ए-हरम से ग़रज़

बेदम शाह वारसी

कभी यहाँ लिए हुए कभी वहाँ लिए हुए

बेदम शाह वारसी

रौनक़ फ़रोग़-ए-दर्द से कुछ अंजुमन में है

बेबाक भोजपुरी

मिस्ल-ए-हुबाब-ए-बहर न इतना उछल के चल

बयान मेरठी

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