खुशबू Poetry (page 12)

आ रहा होगा वो दामन से हवा बाँधे हुए

सालिम सलीम

जिस्म की सतह पे तूफ़ान किया जाएगा

सालिम सलीम

कहीं पे चीख़ होगी और कहीं किलकारियां होंगी

सलीम रज़ा रीवा

ख़ुशबू का लिबास

सलीमुर्रहमान

खुलती है गुफ़्तुगू से गिरह पेच-ओ-ताब की

सलीम शाहिद

दर्द की ख़ुश्बू से सारा घर मोअ'त्तर हो गया

सलीम शाहिद

अक्स हैरान है आइना कौन है

सलीम मुहीउद्दीन

ये लोग जिस से अब इंकार करना चाहते हैं

सलीम कौसर

क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं

सलीम कौसर

कोई याद ही रख़्त-ए-सफ़र ठहरे कोई राहगुज़र अनजानी हो

सलीम कौसर

इस आलम-ए-हैरत-ओ-इबरत में कुछ भी तो सराब नहीं होता

सलीम कौसर

इक घड़ी वस्ल की बे-वस्ल हुई है मुझ में

सलीम कौसर

इक एक लफ़्ज़ में कई पहलू कहाँ से आए

सलीम फ़राज़

सहराओं में जा पहुँची है शहरों से निकल कर

सलीम बेताब

फूलों की है तख़्लीक़ कि शो'लों से बना है

सलीम बेताब

एक ख़ुश्बू दिल-ओ-जाँ से आई

सलीम अहमद

मेरी फ़िक्र की ख़ुशबू क़ैद हो नहीं सकती

सलाम मछली शहरी

थोड़ी देर ऐ साक़ी बज़्म में उजाला है

सलाम मछली शहरी

घर की दीवारों को हम ने और ऊँचा कर लिया

सलाहुद्दीन नदीम

शजर के भीतर छाती चिड़िया

सलाहुद्दीन महमूद

हवा की चितवन जैसे नैन

सलाहुद्दीन महमूद

निराली रातें

सज्जाद ज़हीर

हमें तो हर्फ़-ए-तमन्ना ज़बाँ पे लाना है

सज्जाद सय्यद

शाम

सज्जाद बाक़र रिज़वी

वो तेरी इनायत की सज़ा याद है अब तक

सज्जाद बाक़र रिज़वी

पूछो मुझे ऐ हम-नफ़साँ कौन हूँ क्या हूँ

सज्जाद बाक़र रिज़वी

दुनिया दुनिया सैर सफ़र थी शौक़ की राह तमाम हुई

सज्जाद बाक़र रिज़वी

ब-क़द्र-ए-हौसला कोई कहीं कोई कहीं तक है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

अपने जीने को क्या पूछो सुब्ह भी गोया रात रही

सज्जाद बाक़र रिज़वी

दिल के आँगन में जो दीवार उठा ली जाए

साजिद प्रेमी

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