आ रहा होगा वो दामन से हवा बाँधे हुए
आज ख़ुशबू को परेशान किया जाएगा
Wasi Shah
Habib Jalib
Ahmad Faraz
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Jaun Eliya
Gulzar
Anwar Masood
Rahat Indori
Allama Iqbal
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न छीन ले कहीं तन्हाई डर सा रहता है
हर एक साँस के पीछे कोई बला ही न हो
कितना मुश्किल हो गया हूँ हिज्र में उस के सो वो
मैं घटता जा रहा हूँ अपने अंदर
चराग़-ए-इश्क़ बदन से लगा था कुछ ऐसा
इक नए शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार की बीमारी है
ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे
जुज़ हमारे कौन आख़िर देखता इस काम को
जिस्म की सतह पे तूफ़ान किया जाएगा
नए जहानों का इक इस्तिआरा कर के लाओ
मैं आप अपने अंधेरों में बैठ जाता हूँ
क्या हो गया कि बैठ गई ख़ाक भी मिरी