किनारे Poetry (page 4)

उस से गिले शिकायतें शिकवे भी छोड़ दो

शकील शम्सी

जान की बारी है अब दिल का ज़ियाँ ऐसा न था

शकील ग्वालिआरी

राह में घर के इशारे भी नहीं निकलेंगे

शकील आज़मी

पादाश

शकेब जलाली

बुझे बुझे से शरारे मुझे क़ुबूल नहीं

शकेब जलाली

तू सुब्ह-दम न नहा बे-हिजाब दरिया में

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

सब मुख़ालिफ़ जब किनारे हो गए

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हर एक गाम पे सदियाँ निसार करते हुए

शहज़ाद नय्यर

दिल-ए-फ़सुर्दा उसे क्यूँ गले लगा न लिया

शहज़ाद अहमद

यूँ तो नहीं कि पहले सहारे बनाए थे

शाहिद ज़की

लोग हैरान हैं हम क्यूँ ये किया करते हैं

शाहिद लतीफ़

चाँद माँगा न कभी हम ने सितारे माँगे

शाहिद अख़्तर

ज़मीं का आख़िरी मंज़र दिखाई देने लगा

शाहीन अब्बास

कैसा कैसा दर पस-ए-दीवार करना पड़ गया

शाहीन अब्बास

सदा-ए-मुज़्दा-ए-ला-तक़नतू के धारे पर

शहबाज़ ख़्वाजा

शब जो रुख़-ए-पुर-ख़ाल से वो बुर्के को उतारे सोते हैं

शाह नसीर

शक़ आफ़ियत-कनार किनारे को कर गई

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

रंगों लफ़्ज़ों आवाज़ों से सारे रिश्ते टूट गए

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

कर के सागर ने किनारे मुस्तरद

शादाब उल्फ़त

आदतन मायूस अब तो शाम है

शादाब उल्फ़त

जो बीच में आइना हो प्यारे इधर हमारे उधर तुम्हारे

शाद लखनवी

मय-ए-फ़राग़त का आख़िरी दौर चल रहा था

शब्बीर शाहिद

बहार की धूप में नज़ारे हैं उस किनारे

शब्बीर शाहिद

सुर्ख़ सुनहरी सब्ज़ और धानी होती है

सीमा नक़वी

डिकलाइन

सीमा ग़ज़ल

आँख के साहिल पर आते ही अश्क हमारे डूब गए

सय्यद ज़िया अल्वी

नज़रों की तरह लोग नज़ारे की तरह हम

सऊद उस्मानी

अजाइब-ख़ाना

सरवत ज़ेहरा

लफ़्ज़ों के दरमियान

सरवत हुसैन

मरने का पता दे मिरे जीने का पता दे

सरमद सहबाई

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