किनारे Poetry (page 5)

अफ़्सोस क्या जो हम भी तुम्हारे नहीं रहे

सरदार सोज़

कहीं ये तस्कीन-ए-दिल न देखी कहीं ये आराम-ए-जाँ न देखा

सरस्वती सरन कैफ़

बाद-ए-निस्याँ है मिरा नाम बता दो कोई

साक़ी फ़ारुक़ी

वो आरज़ू कि दिलों को उदास छोड़ गई

समद अंसारी

हम रूह-ए-काएनात हैं नक़्श-ए-असास हैं

समद अंसारी

रंग-ए-ख़ुलूस गंग-ओ-जमन में नहीं रहा

सलीम सरफ़राज़

क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं

सलीम कौसर

सहमे नहीफ़ दरिया के धारे की बात कर

सलीम फ़िगार

सुहाने ख़्वाब आँखों में संजोना चाहता हूँ

सलीम फ़राज़

मज़दूर लड़की

सलाम मछली शहरी

जंगली नाच

सलाम मछली शहरी

धुआँ

सलाम मछली शहरी

दो किनारे हों तो सैल-ए-ज़िंदगी दरिया बने

सज्जाद बाक़र रिज़वी

लफ़्ज़ जब कोई न हाथ आया मआनी के लिए

सज्जाद बाक़र रिज़वी

कलियाँ नीला आसमान ज़ंजीर

साजिदा ज़ैदी

नया रौशन सहीफ़ा दिख रहा नईं

साजिद हमीद

नज़र में वो उतारे जा रहे हैं

साइम जी

आए थे उन के साथ नज़ारे चले गए

सैफ़ुद्दीन सैफ़

धरती की सुलगती छाती से बेचैन शरारे पूछते हैं

साहिर लुधियानवी

ग़ुरूब होते हुए दो सितारे आँखों में

सफ़दर सिद्दीक़ रज़ी

इस से पहले कि किसी घाट उतारे जाते

सफ़दर सलीम सियाल

जल थल का ख़्वाब था कि किनारे डुबो गया

सईद अहमद

अधूरी नस्ल का पूरा सच

सईद अहमद

पत्थर को पूजते थे कि पत्थर पिघल पड़ा

सईद अहमद

दुरून-ए-चश्म हर इक ख़्वाब मर रहा है बस

सादिया सफ़दर सादी

उन्हें कह दो

सादिक़

बचपन की आँखें

सादिक़

ये उम्र भर का सफ़र है इसी सहारे पर

साबिर वसीम

ये उम्र भर का सफ़र है इसी सहारे पर

साबिर वसीम

खिले हुए हैं फूल सितारे दरिया के उस पार

साबिर वसीम

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