किनारे Poetry (page 6)

मुझे क़रार भँवर में उसे किनारे में

साबिर

सवेरा

रियाज़ लतीफ़

हदों के न होने की ज़िल्लत से हारे हुए

रियाज़ लतीफ़

शैख़-जी गिर गए थे हौज़ में मयख़ाने के

रियाज़ ख़ैराबादी

तजस्सुस

रिफ़अत सरोश

नींद आँखों में मुसलसल नहीं होने देता

रेहाना रूही

मुझ को पाना है तो फिर मुझ में उतर कर देखो

राज़ी अख्तर शौक़

भँवर से लड़ो तुंद लहरों से उलझो

रज़ा हमदानी

ये दौर-ए-मसर्रत ये तेवर तुम्हारे

रज़ा हमदानी

इसी बिखरे हुए लहजे पे गुज़ारे जाओ

रउफ़ रज़ा

ख़िलाफ़ सारी लकीरें थीं हाथ मलते क्या

राशिद अनवर राशिद

पत्थर पड़े हुए कहीं रस्ता बना हुआ

राशिद अमीन

ख़ुश्की पे रहूँगी कभी पानी में रहूँगी

राशिदा माहीन मलिक

बाग़ में जुगनू चमकते हैं जो प्यारे रात को

रशीद लखनवी

लहकती लहरों में जाँ है किनारे ज़िंदा हैं

राम रियाज़

बहारें और वो रंगीं नज़ारे याद आते हैं

राम कृष्ण मुज़्तर

अजब नहीं है मुआलिज शिफ़ा से मर जाएँ

राकिब मुख़्तार

जो निहायत मेहरबाँ है और निहाँ रक्खा गया

रख़्शंदा नवेद

जो निहायत मेहरबाँ है और निहाँ रखा गया

रख़्शंदा नवेद

ज़माँ मकाँ थे मिरे सामने बिखरते हुए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मोड़ था कैसा तुझे था खोने वाला मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

चाँद की अव्वल किरन मंज़र-ब-मंज़र आएगी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

महताब नहीं निकला सितारे नहीं निकले

राजेन्द्र नाथ रहबर

काली रेत

रईस फ़रोग़

थोड़ी सी दूर तेरी सदा ले गई हमें

इरफ़ान अहमद

रात भर कोई न दरवाज़ा खुला

इक़बाल नवेद

समुंदर के किनारे इक समुंदर आदमियों का

इक़बाल हैदर

मोहब्बत

इंजिला हमेश

ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं अच्छे लगते

इन्दिरा वर्मा

लिक्खेंगे न इस हार के अस्बाब कहाँ तक

इनाम-उल-हक़ जावेद

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