किनारे Poetry (page 8)

ताक़-ए-अबरू हैं पसंद-ए-तब्अ इक दिल-ख़्वाह के

हैदर अली आतिश

ऐ जुनूँ होते हैं सहरा पर उतारे शहर से

हैदर अली आतिश

आबले पावँ के क्या तू ने हमारे तोड़े

हैदर अली आतिश

मिरे ऐबों की इस्लाहें हुआ कीं बहस-ए-दुश्मन से

हफ़ीज़ जौनपुरी

जुनूँ के जोश में फिरते हैं मारे मारे अब

हफ़ीज़ जौनपुरी

कृष्ण कन्हैया

हफ़ीज़ जालंधरी

ये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गए

हफ़ीज़ जालंधरी

अगर मौज है बीच धारे चला चल

हफ़ीज़ जालंधरी

सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या

हफ़ीज़ बनारसी

किनारे पर कोई आया था

गुलज़ार

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

अपना हर उज़्व चश्म-ए-बीना है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

बग़ैर उस के अब आराम भी नहीं आता

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

नुमूद पाते हैं मंज़रों की शिकस्त से फ़तह के बहाने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

एक घर अपने लिए तय्यार करना है मुझे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़ की ओट में रुका है जो इक हयूला सा यासमीं का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कहूँ जो हाल तो कहते हो मुद्दआ' कहिए

ग़ालिब

दूसरा कप

गीताञ्जलि राय

लोग किनारे आन लगे

गौहर होशियारपुरी

कैसे डूबा डूब गया

गौहर होशियारपुरी

गुज़र रही है मगर ख़ासे इज़्तिराब के साथ

फ़ुज़ैल जाफ़री

सफ़र

फ़ज़्ल ताबिश

मैं उस के ख़्वाब में कब जा के देख पाया हूँ

फ़ज़्ल ताबिश

कली कली का बदन फोड़ कर जो निकला है

फ़ज़्ल ताबिश

क्या बात थी कि उस को सँवरने नहीं दिया

फ़ातिमा वसीया जायसी

जिन ख़्वाहिशों को देखती रहती थी ख़्वाब में

फ़ातिमा हसन

जिन ख़्वाहिशों को देखती रहती थी ख़्वाब में

फ़ातिमा हसन

वो अलग चुप है ख़ुद से शर्मा कर

फ़ारूक़ शफ़क़

हम से तंहाई के मारे नहीं देखे जाते

फ़रहत शहज़ाद

वहाँ मैं जाऊँ मगर कुछ मिरा भला भी तो हो

फ़रहत एहसास

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