किनारे Poetry (page 9)

उम्र बे-वज्ह गुज़ारे भी नहीं जा सकते

फ़रहत एहसास

जिस्म की क़ैद से सब रंग तुम्हारे निकल आए

फ़रहत एहसास

ज़माना झुक गया होता अगर लहजा बदल लेते

फ़रह इक़बाल

एक मुद्दत से यहाँ ठहरा हुआ पानी है

फ़रह इक़बाल

तलाश

फख्र ज़मान

ये मातम-ए-वक़्त की घड़ी है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

नज़्म

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जब तेरी समुंदर आँखों में

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आईना देखते हो

फ़हीम शनास काज़मी

आहिस्ता से गुज़रो

फ़हीम शनास काज़मी

सरोश

एजाज़ फ़ारूक़ी

कभी आँसू कभी ख़्वाबों के धारे टूट जाते हैं

दिनेश ठाकुर

मुमकिन है कि मिलते कोई दम दोनों किनारे

दिलावर अली आज़र

ख़ुद अपनी आग में सारे चराग़ जलते हैं

दिलावर अली आज़र

दूर के एक नज़ारे से निकल कर आई

दिलावर अली आज़र

अजब कश्मकश है अजब है कशाकश ये क्या बीच में है हमारे तुम्हारे

दीप्ति मिश्रा

क्या वहीं मिलोगे तुम

दर्शिका वसानी

बुढ़ापे की चोटी

दर्शिका वसानी

बहुत मुश्किल है तर्क-ए-आरज़ू रब्त-आश्ना हो कर

दर्शन सिंह

एक सब आग एक सब पानी

दानियाल तरीर

बिला-जवाज़ नहीं है फ़लक से जंग मिरी

दानियाल तरीर

रिस रहा है मुद्दत से कोई पहला ग़म मुझ में

बिलाल अहमद

चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग

भारत भूषण पन्त

ख़ुद अपने जुर्म का मुजरिम को ए'तिराफ़ न था

बेकल उत्साही

हो गया चर्ख़-ए-सितमगर का कलेजा ठंडा

बेदिल हैदरी

भूक चेहरों पे लिए चाँद से प्यारे बच्चे

बेदिल हैदरी

कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं

बेदम शाह वारसी

सोए हुए जज़्बों को जगा कर फिर वो शाम न आई

बशीर मुंज़िर

दम-ब-ख़ुद है चाँदनी चुप-चाप हैं अश्जार भी

बशीर मुंज़िर

रोज़ कहाँ से कोई नया-पन अपने आप में लाएँगे

बशर नवाज़

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