हो गया चर्ख़-ए-सितमगर का कलेजा ठंडा
मर गए प्यास से दरिया के किनारे बच्चे
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हम तुम में कल दूरी भी हो सकती है
कहीं इंतिहा की मलामतें कहीं पत्थरों से अटी छतें
ये जो चेहरों पे लिए गर्द-ए-अलम आते हैं
अन-कही को कही बनाना है
रात को रोज़ डूब जाता है
जितना हंगामा ज़ियादा होगा
रहने दे रतजगों में परेशाँ मज़ीद उसे
भूक चेहरों पे लिए चाँद से प्यारे बच्चे
मिरी दास्तान-ए-अलम तो सुन कोई ज़लज़ला नहीं आएगा
गर्मी लगी तो ख़ुद से अलग हो के सो गए