किनारे Poetry (page 10)

मैं किनारे पे खड़ा हूँ तो कोई बात नहीं

बक़ा बलूच

अब नहीं दर्द छुपाने का क़रीना मुझ में

बक़ा बलूच

हादसात अब के सफ़र में नए ढब से आए

बकुल देव

घटा सावन की उमडी आ रही है

बीएस जैन जौहर

घटा सावन की उमडी आ रही है

बीएस जैन जौहर

इक हूक सी जब दिल में उट्ठी जज़्बात हमारे आ पहुँचे

बीएस जैन जौहर

मसअले ज़ेर-ए-नज़र कितने थे

अज़रा वहीद

दरिया पार उतरने वाले ये भी जान नहीं पाए

अज़्म बहज़ाद

बे-हद ग़म हैं जिन में अव्वल उम्र गुज़र जाने का ग़म

अज़्म बहज़ाद

चाँदनी रात में

अज़ीज़ तमन्नाई

चोर-बाज़ार

अज़ीज़ क़ैसी

वक़्त ही वो ख़त-ए-फ़ासिल है कि ऐ हम-नफ़सो

अज़ीज़ हामिद मदनी

क्या हुए बाद-ए-बयाबाँ के पुकारे हुए लोग

अज़ीज़ हामिद मदनी

फूँक देंगे मिरे अंदर के उजाले मुझ को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

दर-पेश नहीं नक़्ल-ए-मकानी कई दिन से

अज़हर नक़वी

तुम बहर-ए-मोहब्बत के किनारे पे खड़े थे

अज़हर नैयर

मैं महल रेत के सहरा में बनाने बैठा

अज़हर नैयर

ये जो रहते हैं बहुत मौज में शब भर हम लोग

अज़हर फ़राग़

धूप में साया बने तन्हा खड़े होते हैं

अज़हर फ़राग़

ये रात आख़िरी लोरी सुनाने वाली है

अज़हर अब्बास

सोचों में लहू उछालते हैं

अय्यूब ख़ावर

लहरों में बदन उछालते हैं

अय्यूब ख़ावर

ख़ुश बहुत आते हैं मुझ को रास्ते दुश्वार से

औरंगज़ेब

एक वो ही शख़्स मुझ को अब गवारा भी नहीं

आतिफ़ ख़ान

कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा

अतहर नफ़ीस

बा'द मुद्दत मिले कुछ कहा न सुना भर गए ज़ख़्म पुरवाइयाँ सो गईं

अतीक़ अंज़र

आवारा

असरार-उल-हक़ मजाज़

कर्गस को सुरख़ाब बनाना चाहोगे

असरा रिज़वी

आँख से तारे टूट रहे हैं

असलम राशिद

हमारी जीत हुई है कि दोनों हारे हैं

असलम कोलसरी

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