मैं किनारे पे खड़ा हूँ तो कोई बात नहीं
बहता रहता है तिरी याद का दरिया मुझ में
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मुझे इक शेर कहना है
कम कम रहना ग़म के सुर्ख़ जज़ीरों में
सिर्फ़ मौसम के बदलने ही पे मौक़ूफ़ नहीं
अब नहीं दर्द छुपाने का क़रीना मुझ में
उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे
माँ
नए समय की कोयल
क्या कहें क्या हुस्न का आलम रहा
क्या पूछते हो मैं कैसा हूँ
वा'दे झूटे क़स्में झूटी
तू ख़ुश है अपनी दुनिया में
संदेसा