सिर्फ़ मौसम के बदलने ही पे मौक़ूफ़ नहीं
दर्द भी सूरत-ए-हालात बता देता है
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वा'दे झूटे क़स्में झूटी
हर कूचे में अरमानों का ख़ून हुआ
दर्द उट्ठा था मिरे पहलू में
तू ख़ुश है अपनी दुनिया में
अब नहीं दर्द छुपाने का क़रीना मुझ में
जाने क्या सोच के घर तक पहुँचा
नए समय की कोयल
उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे
जिस्म अपने फ़ानी हैं जान अपनी फ़ानी है फ़ानी है ये दुनिया भी
क्या कहें क्या हुस्न का आलम रहा
ज़िंदगी से ज़िंदगी रूठी रही