दर्द उट्ठा था मिरे पहलू में
आख़िर-ए-कार जिगर तक पहुँचा
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Gulzar
Wasi Shah
Javed Akhtar
Rahat Indori
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(722) Peoples Rate This
सिर्फ़ मौसम के बदलने ही पे मौक़ूफ़ नहीं
तू ख़ुश है अपनी दुनिया में
ज़िंदगी से ज़िंदगी रूठी रही
जाने क्या सोच के घर तक पहुँचा
क्या पूछते हो मैं कैसा हूँ
कैसा लम्हा आन पड़ा है
कम कम रहना ग़म के सुर्ख़ जज़ीरों में
हर कूचे में अरमानों का ख़ून हुआ
माँ
संदेसा
वा'दे झूटे क़स्में झूटी