हर कूचे में अरमानों का ख़ून हुआ
शहर के जितने रस्ते हैं सब ख़ूनीं हैं
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Gulzar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
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दर्द उट्ठा था मिरे पहलू में
हम ने जिन को सच्चा जाना
कम कम रहना ग़म के सुर्ख़ जज़ीरों में
नए समय की कोयल
जाने क्या सोच के घर तक पहुँचा
सब्र-ओ-ज़ब्त की जानाँ दास्ताँ तो मैं भी हूँ दास्ताँ तो तुम भी हो
क्या पूछते हो मैं कैसा हूँ
क्या कहें क्या हुस्न का आलम रहा
मैं किनारे पे खड़ा हूँ तो कोई बात नहीं
संदेसा
माँ