हम ने जिन को सच्चा जाना
निकलीं वो सब बातें झूटी
Gulzar
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Javed Akhtar
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लोग चले हैं सहराओं को
ज़िंदगी से ज़िंदगी रूठी रही
कैसा लम्हा आन पड़ा है
अब नहीं दर्द छुपाने का क़रीना मुझ में
दर्द उट्ठा था मिरे पहलू में
क्या पूछते हो मैं कैसा हूँ
सब्र-ओ-ज़ब्त की जानाँ दास्ताँ तो मैं भी हूँ दास्ताँ तो तुम भी हो
उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे
क्या कहें क्या हुस्न का आलम रहा
नए समय की कोयल
हर कूचे में अरमानों का ख़ून हुआ