जिस्म अपने फ़ानी हैं जान अपनी फ़ानी है फ़ानी है ये दुनिया भी
फिर भी फ़ानी दुनिया में जावेदाँ तो मैं भी हूँ जावेदाँ तो तुम भी हो
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क्या पूछते हो मैं कैसा हूँ
गर्मी-ए-शिद्दत-ए-जज़्बात बता देता है
दर्द उट्ठा था मिरे पहलू में
कैसा लम्हा आन पड़ा है
एक उलझन रात दिन पलती रही दिल में कि हम
मैं किनारे पे खड़ा हूँ तो कोई बात नहीं
संदेसा
तू ख़ुश है अपनी दुनिया में
वा'दे झूटे क़स्में झूटी
नए समय की कोयल
जाने क्या सोच के घर तक पहुँचा