कोह Poetry (page 3)

किसी बेकस को ऐ बेदाद गर मारा तो क्या मारा

ज़ौक़

दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे

ज़ौक़

बर्क़ मेरा आशियाँ कब का जला कर ले गई

ज़ौक़

आते ही तू ने घर के फिर जाने की सुनाई

ज़ौक़

आब ओ गिया से बे-नियाज़ सर्द जबीन-ए-कोह पर

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

ख़लिश हो जिस में वो अरमाँ तलाश करता हूँ

शम्स इटावी

रौशनी तेज़ करो

शमीम करहानी

बुझे बुझे से शरारे मुझे क़ुबूल नहीं

शकेब जलाली

तेरे आगे ले चुका ख़ुसरव लब-ए-शीरीं से काम

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

मिरा दिल बार-ए-इश्क़ ऐसा उठाने में दिलावर है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

तिरी भुवाँ की तेग़ जब आई नज़र मुझे

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

तरीक़त में अगर ज़ाहिद मुझे गुमराह जाने है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

न बुलबुल में न परवाने में देखा

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जिस ने आदम के तईं जाँ बख़्शा

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

देखना उस की तजल्ली का जिसे मंज़ूर है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हम कि इंसान नहीं आँखें हैं

शहज़ाद अहमद

हिज्र की रात मिरी जाँ पे बनी हो जैसे

शहज़ाद अहमद

लौह-ए-अय्याम

शहराम सर्मदी

लम्स आहट के हवाओं के निशाँ कुछ भी नहीं

शाहिदा हसन

हर मरहले से यूँ तो गुज़र जाएगी ये शाम

शाहिद माहुली

बाम-ओ-दर टूट गए बह गया पानी कितना

शाहिद माहुली

दिए का काम अब आँखें दिखाना रह गया है

शाहीन अब्बास

दर-ए-इम्काँ से गुज़र कर सर-ए-मंज़र आ कर

शाहीन अब्बास

तस्ख़ीर-ए-फ़ितरत के बअ'द

शहाब जाफ़री

बे-सर-ओ-सामाँ कुछ अपनी तब्अ से हैं घर में हम

शहाब जाफ़री

इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो हो

शाह नियाज़ अहमद नियाज़

सरज़मीन-ए-ज़ुल्फ़ में क्या दिल ठिकाने लग गया

शाह नसीर

दिल को किस सूरत से कीजे चश्म-ए-दिलबर से जुदा

शाह नसीर

दम ले ऐ कोहकन अब तेशा-ज़नी ख़ूब नहीं

शाह नसीर

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