कोह Poetry (page 11)

ये तेरी चाह भी क्या तेरी आरज़ू भी क्या

अहमद हमदानी

ऐ मेरे वतन के ख़ुश-नवाओ

अहमद फ़राज़

जब तुझे याद करें कार-ए-जहाँ खेंचता है

अहमद फ़राज़

पहले हम अश्क थे फिर दीदा-ए-नम-नाक हुए

अहमद अता

बुतों के वास्ते तो दीन-ओ-ईमाँ बेच डाले हैं

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

लुटा रहा हूँ मैं लाल-ओ-गुहर अँधेरे में

अफ़ज़ल इलाहाबादी

दिखाई जाएगी शहर-ए-शब में सहर की तमसील चल के देखें

आफ़ताब इक़बाल शमीम

हमारा कोह-ए-ग़म क्या संग-ए-ख़ारा है जो कट जाता

अफ़सर इलाहाबादी

फ़लक उन से जो बढ़ कर बद-चलन होता तो क्या होता

अफ़सर इलाहाबादी

कटी हुई है ज़मीं कोह से समुंदर तक

अदीम हाशमी

तमाम उम्र की तन्हाई की सज़ा दे कर

अदीम हाशमी

ऐसा भी नहीं उस से मिला दे कोई आ कर

अदीम हाशमी

न पावे चाल तेरे की पियारे ये ढलक दरिया

आबरू शाह मुबारक

हुआ हूँ दिल सेती बंदा पिया की मेहरबानी का

आबरू शाह मुबारक

ज़र्द मौसम की हवाओं में खड़ा हूँ मैं भी

आबिद करहानी

तुझ क़द की अदा सर्व-ए-गुलिस्ताँ सीं कहूँगा

अब्दुल वहाब यकरू

दिल है बड़ी ख़ुशी से इसे पाएमाल कर

अब्दुल हमीद अदम

मिरी मैं जश्न-ए-शब-ए-मुनव्वर

अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत

तिलिस्म-ए-ख़्वाब से मेरा बदन पत्थर नहीं होता

अब्बास ताबिश

हर-चंद तिरी याद जुनूँ-ख़ेज़ बहुत है

अब्बास ताबिश

एक मुश्किल सी बहर-तौर बनी होती है

अब्बास ताबिश

चढ़ा दिया है भगत-सिंह को रात फाँसी पर

आफ़ताब राईस पानीपती

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