कोह Poetry (page 2)

रात भर ख़्वाब के दरिया में सवेरा देखा

वहीद अख़्तर

दफ़्तर-ए-लौह ओ क़लम या दर-ए-ग़म खुलता है

वहीद अख़्तर

कोई बस्ती कि मुझ में बस्ती है

वहीद अहमद

अज़ल से बंद दरवाज़ा खुला तो

विकास शर्मा राज़

जमाल-ए-नस्तरनी रंग-ओ-बू-ए-यासमनी

वारिस किरमानी

यास ओ उमीद

उरूज क़ादरी

ख़ाक-ए-हिंद

तिलोकचंद महरूम

होते हैं ख़ुश किसी की सितम-रानियों से हम

तिलोकचंद महरूम

यहीं आना है भटकती हुई आवाज़ों को

तौक़ीर तक़ी

कोई तासीर तो है इस की नवा में ऐसी

तौक़ीर तक़ी

वो ख़ुद गया है उस का असर तो नहीं गया

तारिक़ नईम

ग़म-ए-जहाँ में ग़म-ए-यार ज़म न कर पाया

तालिब हुसैन तालिब

तिरी गली में गए कितने माह ओ साल हुए

तहसीन फ़िराक़ी

इक उम्र हुई और मैं अपने से जुदा हूँ

ताबिश सिद्दीक़ी

आग़ाज़-ए-गुल है शौक़ मगर तेज़ अभी से है

ताबिश देहलवी

दो दमों से है फ़क़त गोर-ए-ग़रीबाँ आबाद

तअशशुक़ लखनवी

ईद की ख़रीदारी

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

ज़िंदगी क्या हर क़दम पर इक नई दीवार है

सय्यद मेराज जामी

अजीब शय है तरह-दार भी तमन्ना भी

सय्यद अमीन अशरफ़

जिस को क़रीब पाया उसी से लिपट गए

सुल्तान अख़्तर

वफ़ा का इम्तिहाँ है जान-आे-तन की आज़माइश है

सुलैमान आसिफ़

नंग-ए-एहसास है अंदोह-ए-ग़रीब-उल-वतनी

सुलैमान आसिफ़

दीद का इसरार मूसा लन-तरानी कोह-ए-तूर

सुग़रा आलम

मिटी मिटी हुई यादों के दाग़ क्या जलते?

सूफ़ी तबस्सुम

हम दिल-ए-ज़ोहरा-वशाँ में ख़ालिक़-ए-अंदेशा हैं

सिराजुद्दीन ज़फ़र

बे-समझे-बूझे मोहब्बत की इक काफ़िर ने ईमान लिया

सिराज लखनवी

सनम ख़ुश तबईयाँ सीखे हो तुम किन किन ज़रीफ़ों सीं

सिराज औरंगाबादी

मुझ सीं ग़म दस्त-ओ-गरेबाँ न हुआ था सो हुआ

सिराज औरंगाबादी

दिलदार की कशिश ने ऐंचा है मन हमारा

सिराज औरंगाबादी

बुल-हवस में भी न था वो बुत भी हरजाई न था

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

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