होंठ Poetry (page 21)

नया शगूफ़ा इशारा-ए-यार पर खिला है

सबा नक़वी

क़तरा क़तरा तिश्नगी

सबा इकराम

आप के लब पे और वफ़ा की क़सम

सबा अकबराबादी

उलझनों में कैसे इत्मीनान-ए-दिल पैदा करें

सबा अकबराबादी

पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम

सबा अकबराबादी

इस रंग में अपने दिल-ए-नादाँ से गिला है

सबा अकबराबादी

इस शोला-ख़ू की तरह बिगड़ता नहीं कोई

रूही कंजाही

हज़ार रंग जलाल-ओ-जमाल के देखे

रूही कंजाही

अब तो यूँ लब पे मिरे हर्फ़-ए-सदाक़त आए

रूही कंजाही

साबुन

रियाज़ लतीफ़

हम जाम-ए-मय के भी लब तर चूसते नहीं

रियाज़ ख़ैराबादी

ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की

रियाज़ ख़ैराबादी

ये कोई बात है सुनता न बाग़बाँ मेरी

रियाज़ ख़ैराबादी

वो हों मुट्ठी में उन की दिल हो हम हों

रियाज़ ख़ैराबादी

वो गुल हैं न उन की वो हँसी है

रियाज़ ख़ैराबादी

उफ़ रे उभार उफ़ रे ज़माना उठान का

रियाज़ ख़ैराबादी

थी ज़र्फ़-ए-वज़ू में कोई शय पी गए क्या आप

रियाज़ ख़ैराबादी

रंग पर कल था अभी लाला-ए-गुलशन कैसा

रियाज़ ख़ैराबादी

पर्दे पर्दे में ये कर लेती हैं राहें क्यूँकर

रियाज़ ख़ैराबादी

मुझ को लेना है तिरे रंग-ए-हिना का बोसा

रियाज़ ख़ैराबादी

मेरे पहलू में हमेशा रही सूरत अच्छी

रियाज़ ख़ैराबादी

कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर

रियाज़ ख़ैराबादी

जोबन उन का उठान पर कुछ है

रियाज़ ख़ैराबादी

जो हम आए तो बोतल क्यूँ अलग पीर-ए-मुग़ाँ रख दी

रियाज़ ख़ैराबादी

हंस के पैमाना दिया ज़ालिम ने तरसाने के बा'द

रियाज़ ख़ैराबादी

दुनिया से अलग हम ने मयख़ाने का दर देखा

रियाज़ ख़ैराबादी

अगर उन के लब पर गिला है किसी का

रियाज़ ख़ैराबादी

आरज़ू भी तो कर नहीं आती

रियाज़ ख़ैराबादी

आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया

रियाज़ ख़ैराबादी

आईना देखते ही वो दीवाना हो गया

रियाज़ ख़ैराबादी

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