होंठ Poetry (page 2)

जब तक कि मोहब्बत का चलन आम रहेगा

ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब

जाँ का दुश्मन है मगर जान से प्यारा भी है

ज़िया ज़मीर

टाइपिस्ट

ज़िया जालंधरी

ख़ुद फ़रेब

ज़िया जालंधरी

हाबील

ज़िया जालंधरी

उफ़्ताद तबीअत से इस हाल को हम पहुँचे

ज़िया जालंधरी

रंग बातें करें और बातों से ख़ुश्बू आए

ज़िया जालंधरी

गुमाँ था या तिरी ख़ुश्बू यक़ीन अब भी नहीं

ज़िया जालंधरी

इक ख़्वाब था आँखों में जो अब अश्क-ए-सहर है

ज़िया जालंधरी

दिल ही दिल में सुलग के बुझे हम और सहे ग़म दूर ही दूर

ज़िया जालंधरी

जो दिल ने कही लब पे कहाँ आई है देखो

ज़ेहरा निगाह

ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है

ज़ेहरा निगाह

ये ख़ाल-ओ-ख़द मिरे अपने

ज़ेहरा निगाह

जो दिल ने कही लब पे कहाँ आई है देखो

ज़ेहरा निगाह

शिकस्त-ए-आरज़ू

ज़ेहरा अलवी

दिन तिरी याद में ढल जाता है आँसू की तरह

ज़ेब ग़ौरी

तेरे रहने को मुनासिब था कि छप्पर होता

ज़रीफ़ लखनवी

महशरिस्तान-ए-जुनूँ में दिल-ए-नाकाम आया

ज़रीफ़ लखनवी

ज़मीन-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा पे उड़ती हिकायतें भी नई नहीं हैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

लबों की जुम्बिश नवा-ए-बुलबुल है शोख़ लहजा तिरा क़यामत

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

तिरी जुस्तुजू तिरी आरज़ू मुझे काम तेरे ही काम से

ज़की काकोरवी

सियह बिस्तर पड़े हैं सुब्ह-ए-नज़्ज़ारा उतर आए

ज़काउद्दीन शायाँ

रात आँसू को तिरी आँख में देखा हम ने

ज़काउद्दीन शायाँ

महकी शब आईना देखे अपने बिस्तर से बाहर

ज़काउद्दीन शायाँ

दम का आना तो बड़ी बात है लब पर 'आरिफ़'

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

ख़ाक पर ही मिरे आँसू हैं न दामन में कहीं

ज़ेब उस्मानिया

सितारे चुप हैं कि नग़्मा-सरा समुंदर है

ज़ाहिद फ़ारानी

चला हूँ घर से मैं अहवाल-ए-दिल सुनाने को

ज़ाहिद चौधरी

सूखे हुए पत्तों में आवाज़ की ख़ुशबू है

ज़हीर सिद्दीक़ी

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