होंठ Poetry (page 4)

बाग़-ए-आलम में है बे-रंग बयान-ए-वाइ'ज़

वज़ीर अली सबा लखनवी

आप अपनी बेवफ़ाई देखिए

वज़ीर अली सबा लखनवी

तुम जो आते हो

वज़ीर आग़ा

कितनी बार बुलाया उस को

वज़ीर आग़ा

रंग और रूप से जो बाला है

वज़ीर आग़ा

लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो

वज़ीर आग़ा

ये जल जाते हैं लब तक आह भी आने नहीं देते

वसीम मीनाई

हवेलियों में मिरी तर्बियत नहीं होती

वसीम बरेलवी

लबों पे शिकवा-ए-अय्याम भी नहीं होता

वक़ार सहर

सलीक़ा बोलने का हो तो बोलो

वक़ार मानवी

सलीक़ा बोलने का हो तो बोलो

वक़ार मानवी

उन की चश्म-ए-मस्त में पोशीदा इक मय-ख़ाना था

वक़ार बिजनोरी

यक़ीनन आ गया है मय-कदे में तिश्ना-लब कोई

वामिक़ जौनपुरी

न पूछो बेबसी उस तिश्ना-लब की

वामिक़ जौनपुरी

कार्ल मार्क्स

वामिक़ जौनपुरी

तुझ से मिल कर दिल में रह जाती है अरमानों की बात

वामिक़ जौनपुरी

कहीं साक़ी का फ़ैज़-ए-आम भी है

वामिक़ जौनपुरी

सनम ने जब लब-ए-गौहर-फ़शान खोल दिए

वलीउल्लाह मुहिब

दिल-ए-ख़िल्क़त-ए-ख़ुदा को सनमा जला न चंदाँ

वलीउल्लाह मुहिब

देखता कुछ हूँ ध्यान में कुछ है

वलीउल्लाह मुहिब

वक़्त बोसे के मिरा मुँह उस के लब से जूँ जुड़ा

वली उज़लत

तिरे लब-बिन है दिल में शोला-ज़न मुल जिस को कहते हैं

वली उज़लत

फूँक दे है मुँह तिरा हर साफ़-दिल के तन में आग

वली उज़लत

न शोख़ियों से करे हैं वो चश्म-ए-गुल-गूँ रक़्स

वली उज़लत

ख़ुदा शाहिद बुतो दो-जग से ये सौदा है निर्वाला

वली उज़लत

ख़ुदा ही पहुँचे फ़रियादों को हम से बे-नसीबों के

वली उज़लत

है उस की ज़ुल्फ़ से नित पंजा-ए-अदू गुस्ताख़

वली उज़लत

ग़ैर-ए-आह-ए-सर्द नहीं दाग़ों के जाने का इलाज

वली उज़लत

दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब

वली उज़लत

तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा

वली मोहम्मद वली

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