होंठ Poetry (page 52)

जब दिल की रहगुज़र पे तिरा नक़्श-ए-पा न था

अदा जाफ़री

होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए

अदा जाफ़री

इश्क़ की सई-ए-बद-अंजाम से डर भी न सके

अबु मोहम्मद सहर

वस्ल की अर्ज़ का जब वक़्त कभी पाता हूँ

आबरू शाह मुबारक

मालूम अब हुआ है आ हिन्द बीच हम कूँ

आबरू शाह मुबारक

रता है अबरुवाँ पर हाथ अक्सर लावबाली का

आबरू शाह मुबारक

हम नीं सजन सुना है उस शोख़ के दहाँ है

आबरू शाह मुबारक

दुश्मन-ए-जाँ है तिश्ना-ए-ख़ूँ है

आबरू शाह मुबारक

देखो तो जान तुम कूँ मनाते हैं कब सेती

आबरू शाह मुबारक

अगर अँखियों सीं अँखियों को मिलाओगे तो क्या होगा

आबरू शाह मुबारक

जब आसमान पर मह-ओ-अख़्तर पलट कर आए

आबिद मुनावरी

ये इम्तियाज़ ज़रूरी है अब इबादत में

अभिषेक शुक्ला

दर-ए-ख़याल भी खोलें सियाह शब भी करें

अभिषेक शुक्ला

उन के लब पर मिरा गिला ही सही

अब्दुस्समद ’तपिश’

अगर वो बे-अदब है बे-अदब लिख

अब्दुस्समद ’तपिश’

मज़ीद कुछ नहीं बोला मैं हो गया ख़ामोश

अब्दुर्राहमान वासिफ़

अभी गुनाह का मौसम है आ शबाब में आ

अब्दुल्लाह कमाल

जिगर में ल'अल के आतिश पड़ी है

अब्दुल वहाब यकरू

तुझ क़द की अदा सर्व-ए-गुलिस्ताँ सीं कहूँगा

अब्दुल वहाब यकरू

शराब लाल-ए-लब-ए-दिल-बराँ है मुझ कूँ मुबाह

अब्दुल वहाब यकरू

लोग हर-चंद पंद करते हैं

अब्दुल वहाब यकरू

गल को शर्मिंदा कर ऐ शोख़ गुलिस्तान में आ

अब्दुल वहाब यकरू

साकिन है कोई और वतन और किसी का

अब्दुल वहाब सुख़न

क्या क्या सुपुर्द-ए-ख़ाक हुए नामवर तमाम

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

काश समझते अहल-ए-ज़माना

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

जीत कर बाज़ी-ए-उल्फ़त को भी हारा जाए

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

उस लब-ए-बाम से ऐ सरसर-ए-फुर्क़त तू बता

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

ब-वक़्त-ए-बोसा-ए-लब काश ये दिल कामराँ होता

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

मरते दम नाम तिरा लब के जो आ जाए क़रीब

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

दोश-ब-दोश दोश था मुझ से बुत-ए-करिश्मा-कोश

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

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