होंठ Poetry (page 50)

कहाँ की गूँज दिल-ए-ना-तवाँ में रहती है

अहमद मुश्ताक़

धड़कती रहती है दिल में तलब कोई न कोई

अहमद मुश्ताक़

चश्म ओ लब कैसे हों रुख़्सार हों कैसे तेरे

अहमद मुश्ताक़

चमक-दमक पे न जाओ खरी नहीं कोई शय

अहमद मुश्ताक़

कह डाले ग़ज़लों नज़्मों में अफ़्साने क्या क्या

अहमद मासूम

उस से रिश्ता है अभी तक मेरा

अहमद महफ़ूज़

ऐ तअ'स्सुब ज़दा दुनिया तिरे किरदार पे ख़ाक

अहमद ख़याल

हंगाम-ए-क़नाअ'त दिल-ए-मुर्दा हुआ ज़िंदा

अहमद हुसैन माइल

ज़मज़मा नाला-ए-बुलबुल ठहरे

अहमद हुसैन माइल

शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए

अहमद हुसैन माइल

प्यार अपने पे जो आता है तो क्या करते हैं

अहमद हुसैन माइल

क्या रोज़-ए-हश्र दूँ तुझे ऐ दाद-गर जवाब

अहमद हुसैन माइल

खड़े हैं मूसा उठाओ पर्दा दिखाओ तुम आब-ओ-ताब-ए-आरिज़

अहमद हुसैन माइल

चोरी से दो घड़ी जो नज़ारे हुए तो क्या

अहमद हुसैन माइल

मुज़्तरिब हैं वक़्त के ज़र्रात सूरज से कहो

अहमद हमदानी

सो देख कर तिरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया

अहमद फ़राज़

तसलसुल

अहमद फ़राज़

अभी हम ख़ूबसूरत हैं

अहमद फ़राज़

तिरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था वही तेरी जल्वागरी रही

अहमद फ़राज़

सभी कहें मिरे ग़म-ख़्वार के अलावा भी

अहमद फ़राज़

नौहागरों में दीदा-ए-तर भी उसी का था

अहमद फ़राज़

न दिल से आह न लब से सदा निकलती है

अहमद फ़राज़

जब यार ने रख़्त-ए-सफ़र बाँधा कब ज़ब्त का पारा उस दिन था

अहमद फ़राज़

हम भी शाएर थे कभी जान-ए-सुख़न याद नहीं

अहमद फ़राज़

हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया

अहमद फ़राज़

दिल मुनाफ़िक़ था शब-ए-हिज्र में सोया कैसा

अहमद फ़राज़

चल निकलती हैं ग़म-ए-यार से बातें क्या क्या

अहमद फ़राज़

बैठे थे लोग पहलू-ब-पहलू पिए हुए

अहमद फ़राज़

अजब जुनून-ए-मसाफ़त में घर से निकला था

अहमद फ़राज़

आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो

अहमद फ़राज़

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