जिगर में ल'अल के आतिश पड़ी है
मगर तुझ लब उपर हाँ की धड़ी है
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अगर नहीं क़स्द ऐ ज़ालिम मिरे दिल के सताने का
शराब लाल-ए-लब-ए-दिल-बराँ है मुझ कूँ मुबाह
प्यासा मत जला साक़ी मुझे गर्मी सीं हिज्राँ की
ख़म-ए-मेहराब-ए-अबरुवाँ के बीच
क्यूँके करे न शहर को रो रो उजाड़ चश्म
इश्क़ है इश्क़-ए-पाक-बाज़ी का
लोग हर-चंद पंद करते हैं
इश्क़ के फ़न नीं हूँ मैं अवधूत
मस्त अँखियाँ का देख दुम्बाला
तुझ क़द की अदा सर्व-ए-गुलिस्ताँ सीं कहूँगा
तेरा ही मैं गदा हूँ मेरा तू शाह बस है
न होवे क्यूँ के गर्दूं पे सदा दिल की बुलंद अपनी