तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा
जादू हैं तिरे नैन ग़ज़ालाँ सूँ कहूँगा
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दिल तलबगार-ए-नाज़-ए-मह-वश है
तिरा लब देख हैवाँ याद आवे
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
किशन की गोपियाँ की नईं है ये नस्ल
कमर उस दिलरुबा की दिलरुबा है
ऐ नूर-ए-जान-ओ-दीदा तिरे इंतिज़ार में
आज दिस्ता है हाल कुछ का कुछ
सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता
राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं
मुफ़लिसी सब बहार खोती है
अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले