जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
उसे ज़िंदगी क्यूँ न भारी लगे
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आज तुझ याद ने ऐ दिलबर-ए-शीरीं-हरकात
सोहबत-ए-ग़ैर मूं जाया न करो
मुफ़्लिसी सब बहार खोती है
राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं
रश्क सूँ तुझ लबाँ की सुर्ख़ी पर
कमर उस दिलरुबा की दिलरुबा है
भड़के है दिल की आतिश तुझ नेह की हवा सूँ
हर ज़र्रा उस की चश्म में लबरेज़-ए-नूर है
वो नाज़नीं अदा में एजाज़ है सरापा
इश्क़ में सब्र-ओ-रज़ा दरकार है
मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के
ख़ूब-रू ख़ूब काम करते हैं