तेरे लब के हुक़ूक़ हैं मुझ पर
क्यूँ भुला दूँ मैं दिल से हक़्क़-ए-नमक
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किया मुझ इश्क़ ने ज़ालिम कूँ आब आहिस्ता आहिस्ता
मत ग़ुस्से के शो'ले सूँ जलते कूँ जलाती जा
छुपा हूँ मैं सदा-ए-बाँसुली में
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
हुए हैं राम पीतम के नयन आहिस्ता-आहिस्ता
ख़ूब-रू ख़ूब काम करते हैं
हर ज़र्रा उस की चश्म में लबरेज़-ए-नूर है
मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के
दिल तलबगार-ए-नाज़-ए-मह-वश है
सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता