छुपा हूँ मैं सदा-ए-बाँसुली में
कि ता जानूँ परी-रू की गली में
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याद करना हर घड़ी तुझ यार का
दिल-ए-उश्शाक़ क्यूँ न हो रौशन
सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता
तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है
कमर उस दिलरुबा की दिलरुबा है
सोहबत-ए-ग़ैर मूं जाया न करो
अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले
तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा
रश्क सूँ तुझ लबाँ की सुर्ख़ी पर
न हो क्यूँ शोर दिल की बाँसुली में
ख़ूब-रू ख़ूब काम करते हैं
जब तुझ अरक़ के वस्फ़ में जारी क़लम हुआ