होंठ Poetry (page 23)

वो तो नहीं मिला है साँसों जिए तो क्या है

रउफ़ रज़ा

दिल दुख न जाए बात कोई बे-सबब न पूछ

रऊफ़ ख़ैर

शौक़ से आए बुरा वक़्त अगर आता है

रसूल साक़ी

न जाने कब बसर हुए न जाने कब गुज़र गए

रशक खलीली

आँखों आँखों में मोहब्बत का पयाम आ ही गया

रशीद शाहजहाँपुरी

शहर-ए-ग़फ़लत के मकीं वैसे तो कब जागते हैं

राशिद मुफ़्ती

सुब्ह-ए-क़यामत जिन होंटों पे दिलासे देखे

राशिद आज़र

अजीब जुम्बिश-ए-लब है ख़िताब भी न करे

राशिद आज़र

तुझ से वहशत में भी ग़ाफ़िल कब तिरा दीवाना था

रशीद रामपुरी

कहते हो मुझे बे-अदब ख़ैर मैं बे-अदब सही

रशीद रामपुरी

ऐ दिल इस का तुझे अंदाज़-ए-सुख़न याद नहीं

रशीद रामपुरी

यूँ भी इक बज़्म-ए-सदा हम ने सजाई पहरों

रशीद क़ैसरानी

ये कौन सा सूरज मिरे पहलू में खड़ा है

रशीद क़ैसरानी

मिरी जबीं का मुक़द्दर कहीं रक़म भी तो हो

रशीद क़ैसरानी

ठहर जावेद के अरमाँ दिल-ए-मुज़्तर निकलते हैं

रशीद लखनवी

जिस को आदत वस्ल की हो हिज्र से क्यूँकर बने

रशीद लखनवी

हुस्न क्या जिस को किसी हुस्न से ख़तरा न हुआ

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

जब तक दौर-ए-जाम चलेगा

रसा चुग़ताई

इस उजड़े शहर के आसार तक नहीं पहुँचे

रऊफ़ अमीर

तुम्हारा क़ुर्ब वजह-ए-इज़्तिराब-ए-दिल न बन जाए

रम्ज़ आफ़ाक़ी

झिलमिलाते हुए आँसू भी अजब होते हैं

रम्ज़ आफ़ाक़ी

इश्क़ की ऐसी शान तो होगी

रम्ज़ आफ़ाक़ी

इक नशा सा ज़ेहन पर छाने लगा

रमेश कँवल

ज़िंदाँ में भी वही लब-ओ-रुख़्सार देखते

राम रियाज़

मेरे तसव्वुरात में अब कोई दूसरा नहीं

राम कृष्ण मुज़्तर

गर्दिश-ए-जाम भी है रक़्स भी है साज़ भी है

राम कृष्ण मुज़्तर

बहारें और वो रंगीं नज़ारे याद आते हैं

राम कृष्ण मुज़्तर

सीने में जब दर्द कोई बो जाता है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

ख़ुद्दारी-ए-हयात को रुस्वा नहीं किया

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

हयात-ओ-मर्ग का उक़्दा कुशा होने नहीं देता

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

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