होंठ Poetry (page 24)

हसीं तुझ से तिरा हुस्न-ए-तलब था

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

सद-सौग़ात सकूँ फ़िरदौस सितंबर आ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ये नाज़ुक लब हैं या आपस में दो लिपटी हुई कलियाँ

राजेन्द्र कृष्ण

न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे

राजेन्द्र कृष्ण

क्या क्या सवाल मेरी नज़र पूछती रही

राजेन्द्र नाथ रहबर

एक चेहलुम पर

राजा मेहदी अली ख़ाँ

सोचिए गर्मी-ए-गुफ़्तार कहाँ से आई

राज नारायण राज़

वो बाम पे फिर जल्वा-नुमा मेरे लिए है

राज कुमार सूरी नदीम

गर्म ज़मीं पर आ बैठे हैं ख़ुश्क लब-ए-महरूम लिए

रईस फ़रोग़

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले

रईस अमरोहवी

ये शहर शहर-ए-बला भी है कीना-साज़ के साथ

रईस अमरोहवी

बता क्या क्या तुझे ऐ शौक-ए-हैराँ याद आता है

रईस अमरोहवी

जिस दर पे तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा न रहेगा

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

शोरिश-ए-पैहम भी है अफ़्सुर्दगी-ए-दिल भी है

राही शहाबी

दिल वाले हैं हम रस्म-ए-वफ़ा हम से मिली है

राही शहाबी

दिल वाले हैं हम रस्म-ए-वफ़ा हम से मिली है

राही शहाबी

पहचान कम हुई न शनासाई कम हुई

राही कुरैशी

चाँद की बुढिया

राही मासूम रज़ा

जो बे-रुख़ी का रंग बहुत तेज़ मुझ में है

इरफ़ान सत्तार

ख़ंदगी ख़ुश लब तबस्सुम मिस्ल-ए-अरमाँ हो गए

इरफ़ान अहमद मीर

वो बोलता था मगर लब नहीं हिलाता था

इक़बाल साजिद

मुझे नहीं है कोई वहम अपने बारे में

इक़बाल साजिद

इक रिदा-ए-सब्ज़ की ख़्वाहिश बहुत महँगी पड़ी

इक़बाल साजिद

जब वो लब-ए-नाज़ुक से कुछ इरशाद करेंगे

इक़बाल मतीन

बगूलों की सफ़ें किरनों के लश्कर सामने आए

इक़बाल माहिर

मिरी ख़ाक उस ने बिखेर दी सर-ए-रह ग़ुबार बना दिया

इक़बाल कौसर

ये ख़ुश्क लब ये पाँव के छाले ये सर की धूल

इक़बाल हैदर

मर्ग-ए-गुल से पेशतर

इक़बाल हैदर

जो तेरे दर्द हैं वही सब मेरे दर्द हैं

इक़बाल हैदर

ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे-नवाई की

इक़बाल अशहर

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