शब्द Poetry (page 14)

लोग यूँ जाते नज़र आते हैं मक़्तल की तरफ़

फ़रहत एहसास

कुछ भी न कहना कुछ भी न सुनना लफ़्ज़ में लफ़्ज़ उतरने देना

फ़रहत एहसास

ख़ुद से इंकार को हम-ज़ाद किया है मैं ने

फ़रहत एहसास

कैसी बला-ए-जाँ है ये मुझ को बदन किए हुए

फ़रहत एहसास

जिस्म जब महव-ए-सुख़न हों शब-ए-ख़ामोशी से

फ़रहत एहसास

दबा पड़ा है कहीं दश्त में ख़ज़ाना मिरा

फ़रहत एहसास

ब-रंग-ए-सब्ज़ा उन्ही साहिलों पे जम जाएँ

फ़रहत एहसास

असीर-ए-ख़ाक भी हूँ ख़ाक से रिहा भी हूँ मैं

फ़रहत एहसास

अभी नहीं कि अभी महज़ इस्तिआरा बना

फ़रहत एहसास

जब तिरी ज़ात को फैला हुआ दरिया समझूँ

फ़रहत अब्बास

मदह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम एक दिन निकल आए थे ख़्वाब से बाहर

फ़हीम शनास काज़मी

दिलों के बीच बदन की फ़सील उठा दी जाए

एज़ाज़ अफ़ज़ल

है नहीं कोई नाख़ुदा दिल का

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

नवेद-ए-यौम-ए-बहाराँ ख़िज़ाँ से ज़ाहिर हो

एजाज़ अासिफ़

बहती हुई आँखों की रवानी में मरे हैं

एजाज तवक्कल

नज़्मों के लिए दुआ-ए-ख़ैर

एजाज़ अहमद एजाज़

मुहाजिर

एजाज़ अहमद एजाज़

मेरी मौत के मसीहा!

एजाज़ अहमद एजाज़

फ़ासलों की बात

एजाज़ अहमद एजाज़

चाँद

एजाज़ अहमद एजाज़

'ग़ालिब' को बुरा क्यूँ कहो

दिलावर फ़िगार

या रब मिरे नसीब में अक्ल-ए-हलाल हो

दिलावर फ़िगार

उट्ठी नहीं है शहर से रस्म-ए-वफ़ा अभी

दिलावर फ़िगार

नींद में खुलते हुए ख़्वाब की उर्यानी पर

दिलावर अली आज़र

कुछ भी नहीं है ख़ाक के आज़ार से परे

दिलावर अली आज़र

क्या चाहा था क्या सोचा था क्या गुज़री क्या बात हुई

देवमणि पांडेय

रुमूज़-ए-औक़ाफ़ की नज़्म

दानियाल तरीर

शहर से क्या गई जानिब-ए-दश्त-ए-ज़र ज़िंदगी फ़ाख़्ता

दानियाल तरीर

रेत मुट्ठी में भरी पानी से आग़ाज़ किया

दानियाल तरीर

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