लोग Poetry (page 64)

चमका जो चाँद रात का चेहरा निखर गया

अब्दुल्लाह जावेद

पूछी न ख़बर कभी हमारी

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

हम और लोग हैं हम से बहुत ग़ुरूर न कर

अब्दुल हमीद अदम

गिरते हैं लोग गर्मी-ए-बाज़ार देख कर

अब्दुल हमीद अदम

तही सा जाम तो था गिर के बह गया होगा

अब्दुल हमीद अदम

गिरते हैं लोग गर्मी-ए-बाज़ार देख कर

अब्दुल हमीद अदम

बहुत से लोगों को ग़म ने जिला के मार दिया

अब्दुल हमीद अदम

आता है कौन दर्द के मारों के शहर में

अब्दुल हमीद अदम

एक ख़ुदा पर तकिया कर के बैठ गए हैं

अब्दुल हमीद

दिल में जो बात है बताते नहीं

अब्दुल हमीद

बहार बन के ख़िज़ाँ को न यूँ दिलासा दे

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

रात है लोग घर में बैठे हैं

अब्दुल अहद साज़

ज़ियारत

अब्दुल अहद साज़

सामेआ लज़्ज़त-ए-बयान-ज़दा

अब्दुल अहद साज़

मरने की पुख़्ता-ख़याली में जीने की ख़ामी रहने दो

अब्दुल अहद साज़

बहुत मलूल बड़े शादमाँ गए हुए हैं

अब्दुल अहद साज़

पागल

अब्बास ताबिश

ये तो नहीं फ़रहाद से यारी नहीं रखते

अब्बास ताबिश

ये हम को कौन सी दुनिया की धुन आवारा रखती है

अब्बास ताबिश

ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं

अब्बास ताबिश

ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं

अब्बास ताबिश

टूट जाने में खिलौनों की तरह होता है

अब्बास ताबिश

पस-ए-ग़ुबार मदद माँगते हैं पानी से

अब्बास ताबिश

न तुझ से है न गिला आसमान से होगा

अब्बास ताबिश

मुसाफ़िरत में शब-ए-वग़ा तक पहुँच गए हैं

अब्बास ताबिश

कोई मिलता नहीं ये बोझ उठाने के लिए

अब्बास ताबिश

कस कर बाँधी गई रगों में दिल की गिरह तो ढीली है

अब्बास ताबिश

दश्त में प्यास बुझाते हुए मर जाते हैं

अब्बास ताबिश

ऐसे तो कोई तर्क सुकूनत नहीं करता

अब्बास ताबिश

वहशत के इस नगर में वो क़ौस-ए-क़ुज़ह से लोग

अब्बास रिज़वी

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