महबूब Poetry (page 5)

'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ तो मुझे महबूब तिरा ग़म भी बहुत है

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

तेज़ाब, आकार ख़ुश्बू का

फ़ारूक़ नाज़की

ब-रोज़-ए-हश्र मिरे साथ दिल-लगी ही तो है

फ़ारूक़ बाँसपारी

इसे भी छोड़ूँ उसे भी छोड़ूँ तुम्हें सभी से ही मसअला है?

फरीहा नक़वी

उम्र बे-वज्ह गुज़ारे भी नहीं जा सकते

फ़रहत एहसास

ऐ सनम देर न कर अंजुमन-आरा हो जा

फ़ना बुलंदशहरी

मुश्किल से चमन में हमें एक बार मिला फूल

फख्र ज़मान

हम ने सहरा को सजाया था गुलिस्ताँ की तरह

फ़ैज़ुल हसन

सोचने दो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शाह-राह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रक़ीब से!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मिरे हमदम मिरे दोस्त!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जिस रोज़ क़ज़ा आएगी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम लोग

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दर्द आएगा दबे पाँव

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

गर्मी-ए-शौक़-ए-नज़ारा का असर तो देखो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

उसी से फ़िक्र-ओ-फ़न को हर घड़ी मंसूब रखते हैं

फ़ैय्याज़ रश्क़

हिमाला की दासियाँ

फ़ैसल सईद फ़ैसल

तुझे भी हुस्न-ए-मुत्लक़ का अभी दीदार हो जाए

अहया भोजपुरी

वस्ल की रात जो महबूब कहे गुड नाईट

दिलावर फ़िगार

ज़हर बीमार को मुर्दे को दवा दी जाए

दिलावर फ़िगार

सुनहरी मछली

दीप्ति मिश्रा

इश्क़ में आबरू ख़राब हुई

द्वारका दास शोला

मशवरा

दाऊद ग़ाज़ी

दौलत मिली जहान की नाम-ओ-निशाँ मिले

दर्शन सिंह

मोहब्बत में आराम सब चाहते हैं

दाग़ देहलवी

इस अदा से वो जफ़ा करते हैं

दाग़ देहलवी

हुस्न के जल्वे लुटाए तिरी रा'नाई ने

चरख़ चिन्योटी

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