महबूब Poetry (page 1)

रास आने लगी थी तन्हाई

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

गुल-चाँदनी

ज़ेहरा निगाह

अद्ल का फ़ुक़्दान

ज़ेहरा अलवी

अगर आप

ज़ीशान साहिल

किसी महबूब-ए-गंदुम-गूँ की उल्फ़त में गुज़रते हैं

ज़ेबा

तमन्ना है किसी की तेग़ हो और अपनी गर्दन हो

ज़रीफ़ लखनवी

धूप थे सब रास्ते दरकार था साया हमें

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

क्यूँ वो महबूब रू-ब-रू न रहे

ज़हीर अहमद ताज

मिज़ाज-ए-शे'र को हर दौर में रहा महबूब

ज़ाहिद कमाल

फ़र्ज़ बरसों की इबादत का अदा हो जैसे

ज़हीर काश्मीरी

हँसी में हक़ जता कर घर-जमाई छीन लेता है

ज़फ़र कमाली

मुझ को समझो न हर्फ़-ए-ग़लत की तरह

ज़फ़र कलीम

चला आँखों से जब कश्ती में वो महबूब जाता है

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

वाँ नक़ाब उट्ठी कि सुब्ह-ए-हश्र का मंज़र खुला

यगाना चंगेज़ी

देखने में ये काँच का घर है

वजद चुगताई

लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

जो भी तेरी आँख को भा जाएगा

तुफ़ैल बिस्मिल

अश्क-दर-अश्क वही लोग रवाँ मिलते हैं

त्रिपुरारि

ज़रा सँभलूँ भी तो वो आँखों से पिला देता है

तौक़ीर अहमद

जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात

तारिक़ क़मर

रौनक़ें आबादियाँ क्या क्या चमन की याद हैं

तालिब अली खान ऐशी

ख़ूब-रू जो एक का महबूब नहीं

ताबाँ अब्दुल हई

याद-ए-अय्याम कि हम-रुतबा-ए-रिज़वाँ हम थे

तअशशुक़ लखनवी

ये फ़ना मेरी बक़ा हो जैसे

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

कोई बतलाए माजरा क्या है

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

वही माबूद है 'नाज़िम' जो है महबूब अपना

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

न हो तू जिस में वो दिल भी है क्या दिल

सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी

ऐब्स्ट्रैक्ट आर्ट

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

किस हसीं ख़्वाब का फ़साना है

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

हाल-ए-बेदारी में रह कर भी मैं ख़्वाबों में रहा

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

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